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वह एक ईमानदार भिखमंगा था। एक दिन वह एक बडी इमारत के सामने खडा हुआ। उसने दरवाजा खटखटाया। बावर्ची आया, दरवाजा खोलकर पूछा, "बोलिये महोदय ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?"
"दान, भगवान की दया का प्रतिरूप!" भिखमंगा ने कहा।
"इसे मैं अपनी मालकिन को पहुँचा दूंगा!" बावर्ची ने कहा।
वावर्ची ने अंदर जाकर, भिखमंगे की बातें मालकिन को पहुँचा दीं। मालकिन कंजूस थी। फिर भी भिखमंगे पर
उसके मन में दया उपजी।
"जरेमिया, उस अच्छे आदमी को एक रोटी दो, बस एक। कल की रोटियों से एक!" मालकिन ने कहा।
जरेमिया को मालकिन पर विशेष भक्ति थी, वह जो कहे वही वह करता है। एस लिये सब रोटियों में जो ज्यादा सूखी बासी थी, उसे लेकर वह बाहर आया। उसे भिखमंगे को दिया।
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